बड़ा धोखेबाज है मानसूनी बुखार

बड़ा धोखेबाज है मानसूनी बुखार

सुमन कुमार

आंकड़ों की मानें तो भारत में मानसून के सीजन में बुखार एवं उसे जुड़ी परेशानियों वाले मरीजों की संख्‍या में बेतहाशा बढ़ो‍तरी हो जाती है। हालांकि इस सीजन में होने वाले बुखार को किसी को हल्‍के में नहीं लेना चाहिए क्‍योंकि ये बुखार कई गंभीर बीमारियों का लक्षण हो सकता है। इन बीमारियों में सबसे आम हैं वायरल, डेंगू, चिकनगुनिया या फि‍र मलेरिया। ऐसे में किसी भी गंभीर स्थिति को टालने के लिए जरूरी है कि लक्षणों के प्रति लोग जागरूक हों और जल्‍द से जल्‍द विशेषज्ञ की मदद मिल सके।

मानसून के साथ भारत में वर्षा ऋतु की शुरुआत हो चुकी है। आयुर्वेद के अनुसार ये शरीर में वात संबंधी विकारों का समय है। हालांकि ये हमारे मन के लिए उल्‍लास का भी समय है मगर साथ ही ये भी जरूरी है कि हम कुछ सावधानियां बरतें, खासकर बच्‍चों के मामले में। इसमें असफल होने पर बच्‍चे कई तरह की बीमारियां और संक्रमण का शिकार हो सकते हैं।

डॉक्‍टर की सलाह

इस बारे में हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्‍यक्ष डॉक्‍टर के.के. अग्रवाल कहते हैं कि हमें मानसून के समय लगातार बने रहने वाले किसी भी बुखार को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही ये भी जरूरी है कि हम अपने आप से इलाज में न जुट जाएं। बुखार अपने आप में कोई बीमारी नहीं है बल्कि ये अलग-अलग बीमारियों का लक्षण है। खासकर मानूसन के समय होने वाला बुखार तो बहुत ही धोखेबाज हो सकता है। इसलिए इस समय होने वाले बुखार के साथ अन्‍य लक्षणों पर ध्‍यान देना जरूरी है।

लक्षण पहचानें

यदि किसी वायरस के संक्रमण के कारण बुखार हुआ है तो इसके साथ मरीज को कफ, आखों में लालिमा या फि‍र नाक से पानी बहने जैसे दूसरे लक्षण हो सकते हैं। यदि डेंगू के मच्‍छर के कारण बुखार हुआ है तो शरीर पर रैशेज, आंखों को हिलाने में दर्द जैसे लक्षण हो सकते हैं। यदि चिकनगुनिया ने धावा बोला है तो इसके बुखार के साथ रैशेज और जोड़ों में दर्द जैसे लक्षण हो सकते हैं। जोड़ों पर दबाव पड़ने पर ये दर्द और बढ़ जाता है। मलेरिया के बुखार के साथ तेज ठंड और कंपकंपी का लक्षण तो हम सभी जानते ही हैं। साथ ही मलेरिया के बुखार के दो अंतरालों के बीच मरीज करीब करीब नॉर्मल महसूस करता है। इन आम वजहों के अलावा जॉन्डिस यानी पीलिया और टायफाइड के कारण भी बुखार आ सकता है। जॉन्डिस में बीमारी बढ़ने पर बुखार खत्‍म हो सकता है जबकि टायफाइड में नब्‍ज चलने की दर कम हो जाती है और मन विषाक्‍त लगने लगता है।

कारण

इस सीजन में दो वजहों से मुख्‍य रूप से कोई भी बीमारी होती है। पहली पानी के दूषित हो जाने के कारण जबकि दूसरी वजह मच्‍छह हैं। डेंगू, चिकनगुनिया और मलेरिया तो मच्‍छर के कारण फैलते हैं जबकि जॉन्डिस और टायफायड की मुख्‍य वजह पानी का दूषित होना है। इसलिए इस मौसम में घर की सही तरीके से साफ सफाई के अलावा पानी का स्‍वच्‍छ होना जरूरी है।

इलाज में सावधानी

डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि जब तक टॉक्‍सेमिया का अनुभव न हो तबतक इस मौसम के बुखारों में एंटीबायोटिक लेने की जरूरत नहीं होती। बुखार के साथ गला खराब होने पर यदि खाना निगलने में परेशानी हो और टॉन्सिल लाल हो गया हो तब एंटीबायोटिक लेने की जरूरत हो सकती है। साथ ही बुखार में दवा खाने में इसलिए भी सतर्क रहने की जरूरत है क्‍योंकि कई बुखार कम करने वाली दवाएं खून में से प्‍लेटलेट्स की संख्‍या को कम कर सकती हैं। ऐसे में मरीज की जान को खतरा हो सकती है। बेहतर है बीमारी को खुद ठीक होने दें क्‍योंकि इस मौसम में होने वाला बुखार आम तौर पर 4 से 7 दिन में खुद ठीक हो जाता है।

अन्‍य सावधानियां

बुखार के समय शरीर का पानी कम होता जाता है। इसलिए बेहतर है कि मरीज को खूब पानी पीने के लिए प्रेरित करें। खासकर ऐसे दिनों में जब बुखार कम हो रहा हो। मरीज को हल्‍का और सुपाच्‍य खाना दें क्‍योंकि बुखार के समय शरीर ज्‍यादा भारी खाना नहीं हजम कर पाता।

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।